समाज सुधारक और मराठी कवियित्री सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थी, जिन्होंने अपने दम पर दुनिया जीती और महिलाओं को उनके स्वाभिमान के साथ जीने की प्रेरणा दी। भारत की महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र में 3 जनवरी 1831 को एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्रीबाई फुले का विवाह सन् 1840 में मात्र 9 वर्ष की आयु में 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले के साथ हुआ। ज्योतिबा बहुत बुद्धिमान थे, उन्होंने मराठी में अध्ययन किया। वे महान क्रांतिकारी, विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे।
सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले ने वर्ष 1848 में मात्र 9 विद्यार्थियों को लेकर एक स्कूल की शुरुआत की थी। उनकी कोई संतान नहीं हुई और उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंतराव को गोद ले लिया। जिसके लिए उन्होंने अपने परिवार में खूब विरोध भी झेला लेकिन अपने फैसले पर अडिग होते हुए उन्होंने अपनत्व की परिभाषा को नए सिरे से जन्म दिया, साथ ही उन दंपति के लिए भी रास्ते खोले जो निसंतान थे।
महिला अधिकार के लिए संघर्ष करने वाली सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए एक केंद्र की स्थापना की और उनको पुनर्विवाह के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अछूतों के अधिकारों के लिए जनजागरण किया। वर्ष 1897 में प्लेग फैलने के दौरान उन्होंने पुणे में अपने पुत्र के साथ मिलकर एक अस्पताल खोला और अस्पृश्य माने जाने वाले लोगों का इलाज किया। हालांकि इस दौरान वह स्वयं प्लेग से पीड़ित हो गईं और उसी वर्ष मार्च में उनका निधन हो गया।
कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फुले ने 2 काव्य पुस्तकें लिखीं- काव्य फुले और बावनकशी सुबोधरत्नाकर। फुले दंपति को महिला शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए 1852 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित भी किया। केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने सावित्रीबाई फुले की स्मृति में कई पुरस्कारों की स्थापना की है। इसके अलावा उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया है। वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पहली महिला अध्यापिका थीं और उन्हें आधुनिक मराठी कविता में अगुवा माना जाता है। सावित्रबाई फूले के महान कार्य देशवासियों को सदैव सही दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।